⛅ Nashoihul Ibad Bab 7
201906 25 06 23 25 Nashoihul ' Ibad Bab 5 Maqalah 6 7 Selasa Pagi Audio Preview
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NashoihulIbad Bab ke 7 - Ust Abd RohimMaqolah ke 7 - 8وقال النبي : الشهداء سبعة سوى المقتول فى سبيل الله، أولهم: المبطونشهيد
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NgajiKitab Nashaihul Ibad Maqalah 5 Bab 7 bersama Ust. M. Arifin, MA di Masjid Bayt Al-QuranKunjungi kami diWebsite - https://baytalquran.idInstagram - htt
. 7Mensagem para o rei Acaz 1No tempo em que Acaz, filho de Jotão e neto de Uzias, era rei de Judá, Rezim, rei da Síria, e Peca, filho de Remalias, rei de Israel, atacaram a cidade de Jerusalém, mas não puderam conquistá-la.2Rs 2Cr 2Quando o rei Acaz soube que os sírios haviam feito um acordo com os israelitas, ele e todo o seu povo ficaram com tanto medo, que tremiam como varas verdes. 3O Senhor Deus disse a Isaías— Vá com o seu filho Sear-Jasube Sear-Jasube em hebraico quer dizer “uns poucos voltarão” ver Is encontrar-se com o rei Acaz. Ele estará na estrada onde os tintureiros trabalham, perto do canal que traz água do açude de cima. 4Diga ao rei que fique alerta, mas que não perca a calma; que não tenha medo, nem fique desanimado por causa do ódio do rei Rezim, dos sírios e do rei Peca. Eles são menos perigosos do que dois tições soltando fumaça. 5Os sírios, junto com o rei Peca e os israelitas, estão fazendo planos para prejudicar o rei Acaz. Eles combinaram o seguinte 6“Vamos atacar o Reino de Judá, conquistar o seu povo e forçá-lo a aceitar o filho de Tabeal como rei.” 7— Porém eu, o Senhor, afirmo que isso não acontecerá. 8-9Pois a Síria não é mais forte do que Damasco, a sua capital, e Damasco não é mais forte do que o rei Rezim. A terra de Israel não é mais forte do que Samaria, a sua capital, e Samaria não é mais forte do que o rei Peca. Mas daqui a sessenta e cinco anos Israel será destruído e deixará de existir como nação.— Se vocês não tiverem uma fé firme, não poderão ficar Deus está com o seu povo 10O Senhor Deus enviou ao rei Acaz esta outra mensagem 11— Peça ao Senhor, seu Deus, que lhe dê um sinal. Esse sinal poderá vir das profundezas do mundo dos mortos ou das alturas do céu. 12Mas Acaz respondeu— Não vou pedir sinal nenhum. Não vou pôr o Senhor à prova. 13Então Isaías disse— Escutem, descendentes do rei Davi! Será que não basta vocês abusarem da paciência das pessoas? Precisam abusar também da paciência do meu Deus? 14Pois o Senhor mesmo lhes dará um sinal a jovem A palavra hebraica aqui traduzida por “jovem” não é o termo especial para “virgem”, porém se refere a uma jovem com idade para se casar, seja virgem ou não. O uso da palavra “virgem” em Mt vem de uma tradução grega do Antigo Testamento, feita uns quinhentos anos depois do profeta Isaías. que está grávida dará à luz um filho e porá nele o nome de Emanuel Emanuel em hebraico quer dizer “Deus está conosco”..Mt 15Quando ele chegar à idade de saber escolher o bem e rejeitar o mal, o povo estará comendo coalhada e mel Indica tempo de abundância, em que o povo terá tudo o que precisar ver Dt 16Mas, mesmo antes desse tempo, ó rei Acaz, as terras daqueles dois reis que lhe causaram tanto medo ficarão completamente abandonadas. 17— O Senhor Deus vai trazer sofrimento para o senhor, ó rei, para as pessoas da sua família e para o seu povo. Ele fará isso por meio do rei da Assíria, e o sofrimento que esse rei vai causar será o pior que já houve desde que o Reino de Israel se separou do Reino de Judá. 18Quando chegar aquele dia, o Senhor Deus vai assobiar e chamar os egípcios para que venham, como se fossem moscas, dos lugares mais distantes do rio Nilo. E assobiará também para que os assírios, como um enxame de abelhas, venham da sua terra. 19Eles virão e, como enxames, pousarão nos vales mais profundos, nas fendas das rochas, e em todos os espinheiros e em todos os lugares onde o gado bebe água. 20— Naquele dia, o Senhor vai contratar um barbeiro que vive na região que fica no outro lado do rio Eufrates, isto é, o rei da Assíria. Ele virá e rapará a barba, os cabelos e os pelos do corpo de todos Isto é, arrasará o país, levará embora tudo o que é dos israelitas e os tratará com crueldade e desprezo.. 21— Naquele dia, quem ficar com uma vaca nova e duas cabras 22terá tanto leite, que poderá comer coalhada. E todos os que ficarem com vida no país comerão coalhada e mel. 23— Naquele dia, o que antes era uma plantação com mil pés de uva, valendo mil barras de prata, virará um terreno cheio de mato e de espinheiros. 24O país todo ficará coberto de espinheiros, e os homens irão ali caçar com arco e flechas. 25E todos os montes, onde antes havia plantações, ficarão tão cobertos de mato e de espinheiros, que ninguém terá a coragem de ir até lá. Somente o gado e as ovelhas irão lá para pastar. Nova Tradução na Linguagem de Hoje Copyright © 2000 Sociedade Bíblica do Brasil. Todos os direitos reservados. A Sociedade Bíblica do Brasil trabalha para que a Bíblia esteja, efetivamente, ao alcance de todos e seja lida por todos. A SBB é uma entidade sem fins lucrativos, dedicada a disseminar a Bíblia e, por meio dela, promover o desenvolvimento integral do ser humano. Você também pode ajudar a Causa da Bíblia!Saiba mais sobre a Nova Tradução na Linguagem de Hoje
বিতর সালাত পরিশিষ্ট চতুর্থ-অংশতিন “ لا يقْعُد” অর্থ সালাম ফেরানোর জন্য বসতেন না’যদি ধরে নেয়া যায় এ হাদীসে “ لا يقْعُد বসতেন না” শব্দটিই সঠিক। তাহলে প্রশ্ন হয় শব্দের অর্থের মধ্যে কি তাশাহুদের জন্য’ বসতেন না এটি সুস্পষ্ট; নাকি সালাম ফিরানোর জন্য’ বসতেন না এ অর্থেরও যথেষ্ট সম্ভাবনা রয়েছে? এ পশ্নের উত্তর খুঁজে দেখা যায়, দুটো অর্থের সম্ভাবনা আছে বটে কিন্তু গভীরভাবে বিশ্লেষণ করলে সালাম ফিরানোর জন্য বসতেন না’ অর্থটিই এখানে যথোপযুক্ত মনে হয়। কারণ একই হাদীসের অন্য বর্ণনায় " لا يفصل فيهن" “নামায বিভক্ত করতেন না”। মুসনাদে আহমদ হা. ২৫২২৩ আরেক বর্ণনায় لا يسلم في ركعتي الوتر “বিতরের দুই রাকাতে সালাম ফেরাতেন না” বলা হয়েছে। সুনানে নাসায়ী সাদ ইবনে হিশাম সূত্রে হযরত আয়শা থেকে বর্ণিত এ হাদীসের বিভিন্ন বর্ণনাগুলোকে এক হাদীস গণ্য করেন তারা সকলেই হাদীসের এ ব্যাখ্যাই করে থাকবেন। এবং لايسلم বা لا يقْعُد যে শব্দই হোক তারা এ হাদীস থেকে এক সালাম ও দুই বৈঠকের তিন রাকাত বিতরই বুঝেছেন।উদাহারণস্বরূপ বলা যায়, ইমাম ইবনুল জাওযী ইমাম শামসুদ্দীন মুহাম্মদ ইবনে আব্দিল হাদী ও ইমাম যাহাবী প্রত্যেকেই কাতাদাসূত্রে হাদীসটি উল্লেখকরে বলেছেন এ হাদীস থেকে এক সালামে তিন রাকাত বিতর পড়া প্রমাণিত হয়। তবে দুই রাকাতে বৈঠক অবশ্যই করতে হবে। তাঁদের বক্তব্য থেকে স্পষ্ট বুঝা যায় যে, তাঁরা দুই রাকাতে বৈঠক না করার সম্ভাবনাটকেও প্রত্যাখ্যান করেছেন দৃঢ়তার সাথে। তাদের তিনজনেরই ভাষ্য প্রায় কাছাকাছি এবং তিনজনের কেউই ফিকহে হানাফীর অনুসরণ করতেন না। তন্মধ্যে ইমাম যাহাবী রহ. ভাষ্য হল قلْنَا يجوزُ هذا أن يوتر بسلامٍ واحدٍ لكنْ يتشهد بينهم كالمغرب আমরা বলি, এ পদ্ধতিতে এক সালামেও তিন রাকাত বিতর পড়া সম্ভাবনা আছে। তবে মাগরিবের নামাযের মত মাঝে তাশাহহুদ পড়বে।’[দেখুনতানকীহু কিতাবিত তাহকীক, ইমাম যাহাবী ১/২১৬, আত্তাহকীক ফি মাসায়িলিল খিলাফ ১/৪৫৬ তানকীহুত তাহক্বীক, ইবনু আব্দিল হাদী ২/৪২১]বরং তারও পূর্বে ইমাম ইবনে হাযম জাহেরী বিতর নামাযের বিভিন্ন পদ্ধতি আলোচনায় বলেন والثاني عشر أن يصلي ثلاث ركعات، يجلس في الثانية، ثم يقوم دون تسليم ويأتي بالثالثة، ثم يجلس ويتشهد ويسلم، كصلاة المغرب وهو اخْتِيَارُ أبي حَنِيفَةَ. দ্বাদশ পদ্ধতি তিন রাকাত নামায পড়বে। তাতে দুই রাকাত শেষে বসে সালাম না ফিরিয়েই আবার দাড়িয়ে যাবে এবং তৃতীয় রাকাত পড়বে। অতঃপর মাগরিবের নামাযের মতই বসে তাশাহহুদ পড়ে সালাম ফিরাবে। আর এ মতটাই গ্রহণ করেছেন আবু হানীফা”। অতঃপর তিনি দলিল হিসেবে সাদ ইবনে হিশামের এ বর্ণনাটিই উল্লেখ করেছেন, لا يسلم في ركعتي الوتر। আল-মুহাল্লা বিল আসার ৩/৪৭আলোচ্য হাদীসের এ অর্থটা খুব স্বাভাবিক। এ কারণেই গায়রে মুকাল্লিদ আলেম শাওকানী রহ. ও শামসুল হক আজীমাবাদী রহ. উভয়েই সাদ ইবনে হিশাম সূত্রে হযরত আয়শার এ হাদীসের একটি বর্ণনায় “لا يقْعُد বসতেন না” শব্দের ঠিক একই ব্যাখ্যা করেছেন। শাওকানী রহ. নবীজী থেকে বর্ণিত হাদীস صلى سبع ركعات لا يقعد إلا في آخرهن সাত রাকাত পূর্ণ করার আগে বসতেন না’ এর ব্যাখ্যায় বলেনالرواية الأولى تدل على إثبات القعود في السادسة والرواية الثانية تدل على نفيه ويمكن الجمع بحمل النفي للقعود في الرواية الثانية على القعود الذي يكون فيه التسليم “প্রথম বর্ণনা থেকে বুঝা যায় ষষ্ট রাকাতে বসতেন’। আর দ্বিতীয় বর্ণনা থেকে বুঝা যায় বসতেন না’। এ দুয়ের মাঝে এভাবে সামঞ্জস্য হবে যে, তিনি বসতেন না’ দ্বারা বোঝানো হয়েছে সালাম ফেরানোর জন্য বসতেন না’।” [নাইলুল আওতার ৩/৪৭ ছালাতুল বিতরি ওয়াল কিরাআতি ওয়াল কুনূত অধ্যায়, আওনুল মাবুদ শারহু সুনানি আবি দাউদ ৪/২২১]চার ইমাম বাইহাকী রহ. নিজেই এ হাদীস থেকে এক সালাম ও দুই তাশাহুহুদে তিন রাকাত বিতর’ বুঝেছেন।আলোচ্য বর্ণনাটি এ শব্দে বর্ণিত হয়েছে মৌলিকভাবে কেবল হাকেমের মুসতাদরাক কিতাবে। ইমাম বাইহাকী হাদীসটি হাকেমের সূত্রেই আস-সুনানুল কুবরা’ ও মারিফাতুস সুনান’ গ্রন্থদ্বয়ে বর্ণনা করেছেন। আর বর্ণনাকারী ইমাম বাইহাকী নিজেই এ হাদীস থেকে এক সালাম ও দুই তাশাহহুদে তিন রাকাত বিতর’ বুঝেছেন। তিনি আসসুনানুল কুবরায়’ ৩/৩১ যে অধ্যায়ে হাদীসটি উল্লেখ করে এর শিরোনাম দিয়েছেন باب من أوتر بثلاث موصولات بتشهدين وتسليم “অধ্যায় ঃ যারা দুই তাশাহহুদ ও এক সালামে একত্রে মিলিয়ে তিন রাকাত বিতর পড়েন”। আর মারিফাতুসসুনান’ গ্রন্থে ৪/৭১ আরো স্পষ্ট বলেছেন الوتر بثلاث ركعات موصولات بتشهدين ويسلم من الثالثة “বিতর নামায দুই তাশাহ্হুদে একত্রে তিন রাকাত, এবং তৃতীয় রাকাত পূর্ণ করে সালাম ফেরাবে”। এখানে বাইহাকী রহ. হাদীসটি থেকে কি বুঝে আসে তা স্পষ্ট করে দিয়েছেন। তদ্রƒপ হাকেম নিজেও এ হাদীস পূর্ববর্তী হাদীসের সমর্থক বলে দিয়েছেন। যাতে বসতেন না’ কথাটি নেই।গ্রন্থকার - ১৭গ্রন্থকার বলেন, “বিশেষ সতর্কতা মুস্তাদরাকে হাকেমে বর্ণিত لا يقْعُد বসতেন না শব্দকে পরিবর্তন করে পরবর্তী ছাপাতে لا يُسَلم সালাম ফিরাতেন না করা হয়েছে। কারণ পূর্ববর্তী সকল মুহাদ্দিছ لا يقْعُد দ্বারাই উল্লেখ করেছেন। টীকায় বরাত দিয়েছেন “হাকেম হা/১১৪০ ফৎহুল বারী হা/৯৯৮ আল-আরফুশ শাযী ২/১৪” গ্রন্থকারের দাবি মুসতাদরাকের মুদ্রিত কপিতে হাদীসের শব্দ পরিবর্তন করে দেওয়া হয়েছে। কিন্তু কে পরিবর্তন করেছে তিনি তা বলেননি। আর যদি কোন প্রমাণ না থাকে তাহলে অনুমান ভিত্তিক এমন অপবাদ কারো উপর দেয়া ঠিক নয়। পূর্বে বলা হয়েছে কিতাবটি ছাপার বহুকাল আগেই হাদীসটি এ শব্দে বিভিন্ন জনের কিতাবে ছিল। মুযাফফর বিন মুহসিন সাহেব যে বলেছেন, পরবর্তী ছাপায় পরিবর্তন করা হয়েছে; তিনি কি দেখাতে পারবেন যে পূর্ববর্তী কোন ছাপায় তা لا يقْعُدশব্দে ছিল?দুই. তিনি পরিবর্তনের দলিল হিসেবে যা উল্লেখ করেছেন তা একদিকে যেমন ভিত্তিহীন অপরদিকে হাস্যকরও বটে। বলেন “কারণ পূর্ববর্তী সকল মুহাদ্দিছ لا يقْعُدদ্বারাই উল্লেখ করেছেন”। কিন্তু এ দাবি যে সঠিক নয় পূর্বের আলোচনায় তা স্পষ্ট হয়ে গেছে। কেননা কিতাব মুদ্রণের যুগ শুরু হওয়ার বহু যুগ আগেই অনেক সংখ্যক মুহাদ্দিস বর্ণনাটি لا يسلم শব্দে উল্লেখ করেছেন। যদিও কোন কোন মুহাদ্দিস বর্ণনাটি দ্বিতীয় শব্দেও উল্লেখ করেছেন তবুও অনেকগুলো পার্শ্বকারণ সামনে রাখলেلا يسلم শব্দটিকেই প্রাধান্য দিতে হয়। সুতরাং মুদ্রণের বহু আগে থেকেই এ শব্দ ছিল।খআর “পূর্ববর্তী সকল মুহাদ্দিস” কথাটি একেবারেই ভিত্তিহীন। যা পূর্বে দেখানো হয়েছে।তিন. গ্রন্থকার টীকায় বরাত দিয়েছেন, “হাকেম হা/১১৪০ ফৎহুল বারী হা/৯৯৮ আল-আরফুশ শাযী ২/১৪” এখানে হাকেমের বরাত দেয়াটা হাস্যকর। কারণ, মতপার্থক্যই হল হাকেমের শব্দ নিয়ে। হাকেমের কিতাব থেকে মুহাদ্দিসগণ দুই শব্দেই হাদীসটি উল্লেখ করেছেন। তাই এক্ষেত্রে হাকেমের বরাত দেয়াটা সত্যিই হাস্যকর। আবার হাকেমের মুদ্রিত কপিতেতো রয়েছে لا يسلمশব্দ। তিনি যে হাদীস নাম্বার দিয়েছেন মুসতাদরাকের কোন কপিতেতো এখানে لا يقْعُد শব্দে হাদীসটি নেই। আর ফাতহুল বারীতে ইবনে হাজার এ শব্দে আনলেও তাঁর আদদিরায় কিতাবে তিনি لا يسلمশব্দে এনেছেন।গ্রন্থকার - ১৮অতঃপর গ্রন্থকার বলেন “আরো দুঃখজনক হল, আল্লামা আনোয়ার শাহ কাশ্মীরী রহ. নিজে স্বীকার করেছেন যে, আমি মুস্তাদরাক হাকেমের তিনটি কপি দেখেছি কিন্তু কোথাও لا يُسَلم সালাম ফিরাতেন না পাইনি। তবে হেদায়ার হাদীছের বিশ্লেষক আল্লামা যায়লাঈ উক্ত শব্দ উল্লেখ করেছেন। আর যায়লাঈর কথাই সঠিক। সুধি পাঠক! ইমাম হাকেম ৩২১-৪০৫ নিজে হাদীছটি সংকলন করেছেন আর তিনিই সঠিকটা জানেন না! বহুদিন পরে এসে যায়লাঈ সঠিকটা জানলেন? অথচ ইমাম বায়হাক্বী ৩৮৪-৪৫৮হিঃ ও একই সনদে উক্ত হাদীছ উল্লেখ করেছেন। সেখানে একই শব্দ আছে। অর্থাৎ لا يقْعُد বসতেন না আছে। একেই বলে মাযহাবী গোঁড়ামী। অন্ধ তাকলীদকে প্রাধান্য দেয়ার জন্যই হাদীছের শব্দ পরিবর্তন করা হয়েছে।” বক্তব্যের খোলাসা কথা হল বর্ণনা করেছেন হাকেম মুসতাদরাক গ্রন্থে لا يقْعُد বসতেন না’ শব্দে। আর যাইলাঈ কয়েকশত বছর পর এসে বলছেন হাদীসের শব্দ হল لا يسلم সালাম ফিরাতেন না’। রহ. মাযহাবের গোঁড়ামির কারণে বলছেন যাইলাঈর কথাই সঠিক।পর্যালোচনাক বক্তব্য বিকৃত করে অপবাদ আরুপগ্রন্থকার এখানে রীতিমত আনওয়ার শাহ কাশ্মীরী রহ. এর বক্তব্যকে কেটে ছেটে বিকৃত করে তার উপরে দোষ চাপিয়ে দিলেন। দেখুন তিনি বলেন, “আর যায়লাঈর কথাই সঠিক”! অতঃপর বিস্ময়করভাবে যাইলাঈকে হাকেম ও বাইহাকীর মোকাবেলায় দাড় করালেন?!বস্তুত গ্রন্থকারের দুটি কথাই সম্পূর্ণ অবাস্তব। দেখুন কাশ্মীরী রহ. বক্তব্য হল, “আমার প্রবল ধারণা لا يسلمশব্দটি মুসতাদরাকে হাকেমের পা-ুলিপিতেও থাকবে। কেননা যাইলাঈ কারো উদ্ধৃতি উল্লেখ করার সময় এতটা মুতাসাব্বিত নিশ্চিত ও নির্ভুলভাবে উল্লেখ করেন, হাফেজ ইবনে হাজার আসকালানীও অতটা করেন না। তাঁর একটি আদত হল, তিনি যখন কারো বক্তব্য কোন মাধ্যমে পেয়ে থাকেন তখন তার বরাত উল্লেখ করে দেন। নতুবা নিজ চোখে দেখেই সেখান থেকে হুবহু বক্তব্যটিই উল্লেখ করেন। আর এখানে শব্দ পরিবর্তন করে অর্থাৎ لا يقْعُد না বলে لا يسلم বলেছেন। এবং এর কোন বরাতও উল্লেখ করেননি। তাই বুঝা যায় তিনি মসতাদরাকে لا يسلم শব্দটি নিজ চোখে দেখেই তবে উল্লেখ করেছেন। সুতরাং لا يسلم শব্দটি মুসতাদরাকের পা-ুলিপিতে অবশ্যই থাকবে।অর্থাৎ যাইলাঈ রহ. হাকেম রহ এর মুসতাদরাক গ্রন্থ থেকে হাদীসটি لا يقْعُد শব্দে নয় বরং لا يسلم শব্দেই উল্লেখ করেছেন। কাশ্মীরির কথা হল, মুসতাদরাকের কোন পা-ুলিপিতে যদি হাদীসটিلا يسلم শব্দে আমি না পাই, তবুও প্রবল ধারণা হয় যে, এটি মুসতাদরাকের কোন না কোন কপিতে থাকবেই। কারণ, যাইলাঈ নিজের চোখে না দেখে কোন বরাত দেন না। সুতরাং হাকেম মুসতাদরাক গ্রন্থে হাদীসটি কোন শব্দে বর্ণনা করেছেন, তাতো আর আমরা হাকেমকে জিজ্ঞেস করে জানতে পারব না। বরং মুসতারাকের কপিতে যা পাই তাই বিশ্বাস করতে হবে। তাছাড়া যাইলাঈ ছাড়াও আরো অনেকেই মসতাদরাকের বরাতে হাদীসটি لا يسلم শব্দে উল্লেখ করেছেন। এতেও কাশ্মীরীর রহ. এর বক্তব্যের সমর্থন পাওয়া যায়।সাধারণ পাঠকও এখান থেকে একথা বুঝবে না যে, হাকেম বলতেছেন, হাদীসের শব্দ হল لا يقْعُدবসতেন না’, আর যাইলাঈ এটা অস্বীকার করে বলছেন হাদীসের শব্দ لا يسلم সালাম ফিরাতেন না’।বরং এখানে মুযাফফর বিন মুহসিন সাহেব মুসতাদরাকের কপিতে হাদীসটি لا يقْعُد বসতেন না’ শব্দে পেয়েছেন বলে দাবি করেছেন। যদিও কোন কপিতে পেয়েছেন তার কোন উল্লেখ তিনি করেননি। বিপরীতে যাইলাঈ মুসতাদরাকের বরাতে হাদীসটি لا يسلم সালাম ফিরাতেন না’ শব্দে উল্লেখ করেছেন। আমরাও বহু সংখ্যক মুদ্রিত কপিতে হাদীসটি এ শব্দেই পেয়েছি। তাই একথা বলা যায়, মুসতাদরাকে হাদীসটি কোন শব্দে রয়েছে এ বিষয়ে জনাব মুযাফ্ফর সাহেব এর কথা বিশ্বাস করব, নাকি ইমাম যাইলাঈর কথা?! সাথে একথাও মনে রাখতে হবে যে মুযাফফর সাহেব কোন মুদ্রিত ও অমুদ্রিত প-ুলিপিতেই لا يقْعُد বসতেন না’ শব্দটি দেখেছেন বলে প্রমাণ হয়নি। তবুওকি যাইলাঈর কথাকে সঠিক বললে দোষ হবে?বরং মুযাফফর সাহেব কোন কপিতে সরাসরি না দেখে সালাম ফিরাতেন না’ শব্দটি পরিবর্তন করে বসতেন না’ উল্লেখ করে মহা অন্যায় করেছেন।বিষয়টি বুঝে থাকলে এবার গ্রন্থকারের পরবর্তী কথাগুলো পড়ে হাসিও আসবে, আবার কান্নারও জোগাড় হবে যে, এমন লোক এভাবে ইমামদের ও উলামাদের উপরে অপবাদ দিয়ে যাচ্ছেন কত দুঃসাহসিকাতার সাথে! দেখুন তিনি বলেন “সুধি পাঠক! ইমাম হাকেম ৩২১-৪০৫ নিজে হাদীছটি সংকলন করেছেন আর তিনিই সঠিকটা জানেন না! বহুদিন পরে এসে যায়লাঈ সঠিকটা জানলেন? অথচ ইমাম বায়হাক্বী ৩৮৪-৪৫৮হিঃও একই সনদে উক্ত হাদীছ উল্লেখ করেছেন। সেখানে একই শব্দ আছে। অর্থাৎ لا يقْعُدবসতেন না আছে।” আফসোস, গ্রন্থকার যে বোঝেন না একথাটা যদি তিনি বুঝতেন!অথচ এমন পরিপক্ক! বুঝ নিয়েই গ্রন্থকার মুখস্ত করা গালি ছুড়ে মারলেন আনওয়ার শাহ কাশ্মীরী রহ. এর মত একজন প্রাজ্ঞ হাদীস বিশারদকে বিনা অপরাধে অপরাধী ও প্রতিপক্ষ বানিয়ে, “একই বলে মাযহাবী গোঁড়ামী। অন্ধ তাকলীদকে প্রাধান্য দেয়ার জন্যই হাদীছের শব্দ পরিবর্তন করা হয়েছে।” ইন্না লিল্লাহি ওয়াইন্না ইলাইহি রাজিউন!মোটকথা এ পদ্ধতির বিতরের সপক্ষে কোন সহীহ ও স্পষ্ট হাদীস নেই। তাই ইবনে হাযম জাহেরী রহ. বিতর বিষয়ক যত বর্ণনা পাওয়া যায় সবগুলোকেই বিতর নামাযের একেকটি তরীকা বলে মোট ১৩ পদ্ধতিতে বিতর পড়ার বৈধতা দিয়েছেন। আশ্চর্য, সেখানেও এ পদ্ধতির বিতরের কোন উল্লেখ নেই। আর তিনি ছাড়া যারাই বিতরের এমন একটি পদ্ধতির সম্ভাবনা ও বৈধতার কথা উল্লেখ করেছেন, তাদের কেউ এ ভূল বর্ণনা দিয়ে দলিল পেশ করেননি।আরেকটি ভুলগ্রন্থকার যাইলাঈকে বলেছেন হেদায়ার হাদীছের বিশ্লষক’। এটিও গ্রন্থকারের একটি ভুল। কারণ বিশ্লেষক বলা হয় ব্যাখ্যাকারকে। আসলে যাইলাঈ হেদায়ার হাদীসের তাখরীজ’ করেছেন। তাখরীজ’ মানে হাদীসের উৎস ও সূত্র উদ্ধার করা। পাশাপাশি কেউ কেউ হাদীসের মান নির্ণয়ের কাজও করে দেন। যে এ কাজ করে পরিভাষায় তাকে মুর্খারিজ’ বলে। বাংলায় সূত্র উদ্ধারক বলা যেতে পারে।খ একই হাদীস কি একবার সহীহ হয় আরেকবার দূর্বলসবচেয়ে আশ্চর্যের বিষয় হল, গ্রন্থকার এখানে হযরত আয়শা রা. এর যে হাদীস দিয়ে বিশেষ প্রকারের বিতর প্রমাণ করতে চাচ্ছেন, যার পক্ষে এ বর্ণনাটি ছাড়া আর কোন দলিল নেই, তার বইয়ের ৩৩৩ পৃষ্ঠার টীকায় এটিকেই আবার জোর দিয়ে যঈফ ও দূর্বল সাব্যস্ত করেছেন! দেখুন গ্রন্থকার ৩৩৩ পৃষ্ঠায় বলেন, “ তিন রকাআত বিতরের মাঝে সালাম দ্বারা পার্থক্য করা যাবে না মর্মে যে হাদীছ বর্ণিত হয়েছে তা যঈফ”। টীকায় লেখেন “১২৯০. ইরওয়াউল গালীল ২/১৫০”পর্যালোচনাগ্রন্থকারের উল্লিখিত বরাতে ইরওয়াউল গালীল ২/১৫০ শায়খ আলবানী রহ. বলেন, وكأنه من أجله ضعف الإمام أحمد إسناده كما نقله المجد ابن تيمية فى المنتقى ২/২৮০ ـ بشرح الشوكانى “হয়ত একারণেই ইমাম আহমদ হাদীসটিকে যঈফ বলেছেন, যেমনটি ইবনে তাইমিয়া আল-জাদ্দ তার মুনতাকায় উল্লেখ করেছেন। নায়লুল আওতার ২/২৮০”। অর্থাৎ ইমাম আহমদ, ইবনে তাইমিয়া আল-জাদ্দ, শাওকানী, আলবানী প্রমুখ এ বর্ণনাটিকে যঈফ বলেছেন। কেউ তাদের এ বক্তব্য গ্রহণ নাও করতে পারেন, যদি তার কাছে দলিল থাকে। কিন্তু এক স্থানে তাদের কথা গ্রহণ করবেন, আবার একই হাদীসের বিষয়ে অন্য স্থানে গ্রহণ করবেন না, হাদীসের ক্ষেত্রে এমন দ্বিমুখী নীতি কেন? মাযহাবী গোঁড়ামী ধরতে গিয়ে এমন গোঁড়ামীর জালেই আটকা পরে গেলেন না তো আবার?গ্রন্থকার - ১৯এক বৈঠকে তিন রাকাতের পক্ষে গ্রন্থকারের দ্বিতীয় দলিলب عبد الرزاق عن معمر عن ابن طاووس عن أبيه أنه كان يوتر بثلاث لا يقعد بينهن.“খ ইবনু ত্বাউস তার পিতা থেকে বর্ণনা করেন যে, রসূল ছাঃ তিন রাকআত বিতর পড়তেন। মাঝে বসতেন না। টীকা মুছান্নাফ আব্দুর রাযযাক হা/৪৬৬৯ তয় খ-, তাবেয়ীর আমলকে নবীজীর আমল বানিয়ে দিলেনগ্রন্থকার এখানে একজন তাবেয়ীর আমলকে রাসূলুল্লাহ সাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামের আমল বানিয়ে চরম অজ্ঞতার পরিচয় দিলেন। তিনি লিখেছেন “রসূল ছাঃ তিন রাকাত ..”। অথচ এটি হবে “তাউস তিন রাকাত ...”। মূলত এ বর্ণনায় রাসূলুল্লাহ সাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামের কোন উল্লেখও নেই ইঙ্গিতও নেই। বিষয়টি যে কোন হাদীসের পাঠকেরই বোধগম্য হওয়ার কথা।দুই. আবার এখানে শব্দ এসেছে لا يقعد তিনি বসতেন না’; একথা বলেননিلا يتشهد তিনি দুই রাকাতে তাশাহহুদ পড়তেন না’। তাই এখানে لا يقعدএর এ অর্থ খুবই যুক্তিসঙ্গত যে তিনি সালাম ফিরানোর জন্য বসতেন না’। সুতরাং এ আসারটিও দুই রাকাতে তাশাহহুদের জন্য না বসা বিষয়ে স্পষ্ট নয়।তিন. গ্রন্থকার এর পূর্বের পৃষ্ঠায় দ্বিতীয় রাকাতে বৈঠক করার বিষয়ে ওবাইদুল্লাহ মুবারকপুরীর বক্তব্য তুলে ধরেছেন। যার অর্থ “তিন রাকাত বিতর পড়ার সময় দ্বিতীয় রাকাতে বৈঠক করার বিষয়ে কোন মরফু-সহীহ-সরীহ তথা সহীহ ও সুস্পষ্ট নবীজীর কোন হাদীস পাইনি। لم أجد حديثا مرفوعا صحيحا صريحا في إثبات الجلوس في الركعة الثانية عند الإيتار بالثلاث. ”দেখুন দুই রাকাতে বৈঠক প্রমাণ করার জন্য গ্রন্থকার দাবি করলেন হাদীসটি হতে হবে ১. মরফু তথা নবীজীর কথা বা কাজ ২. হতে হবে সহীহ ৩. হতে হবে সরীহ তথা সুস্পষ্ট ও দ্ব্যর্থহীন।আর এখানে গ্রন্থকার যে দলিল পেশ করলেন তা ১. নবীজীর কথা বা কাজতো নয়ই, সাহাবীরও নয়; বরং তাবেয়ীর কর্ম মাত্র। ২. সনদ সহীহ কি সহীহ না সে বিষয়ে গ্রন্থকার কিছুই বলেননি। ৩. আবার বর্ণনাটি সরীহ বা সুস্পষ্ট নয়। বরং এর বিপরীত অর্থের প্রবল সম্ভাবনা রাখে।অন্যের কাছে দলিল চাওয়ার সময় যে যে বিষয়গুলোর শর্ত করলেন এর কোনওটি কি আছে এখানে তার উল্লিখিত দলিলে? যদি না থাকে তাহলে এমন দ্বিমুখী নীতি কেন? অথচ নামাযের স্বাভাবিক নিয়মানুসারে সহীহ মুসলিমে শরীফের বর্ণনানুযায়ী প্রতি দুই রাকাত পর তাশাহহুদ আছে’। আর এর ব্যতিক্রম কোন নামাযে পাওয়া যায় না। সুতরাং দুই রাকাতে তাশাহহুদ না পড়ার সুস্পষ্ট দলিল না পাওয়া পর্যন্ত দলিল ছাড়াই নামাযের স্বাভাবিক নিয়মেই তাশাহহুদ পড়া আবশ্যক হওয়ার কথা। তার উপর আবার শক্তিশালী দলিলও রয়েছে। তারপরও কেন দলিল ছাড়া এ নতুন নিয়মের বিতর আবিস্কার করে দলিল বিশিষ্ট সহীহ নিয়মকে ভুল আখ্যায়িত করা হচ্ছে।চার. আমাদের আলোচনায় এসেছে যে, গ্রন্থকার একাধিক স্থানে সাহাবীর কথা বা কাজ সংক্রান্ত বর্ণনাকে মওকুফ বলে উড়িয়ে দিয়েছেন। আর এখানে তিনি তার চেয়েও নিচে তথা তাবেয়ীর কথাও নয় বরং অস্পষ্ট ও দ্ব্যর্থবোধক আমলকে পুঁজি করে নিজের মতটাকেই একমাত্র সঠিক সাব্যস্ত করতে চাচ্ছেন।গ্রন্থকার - ২০গ্রন্থকারের তৃতীয় দলিলعن قتادة قال كان رسول الله صلى الله عليه وسلم " يوتر بثلاث لا يقعد إلا في آخرهن“গ ক্বাতাদা রাঃ বলেন, রাসূল ছাঃ তিন রাকআত বিতর পড়তেন। শেষের রাকআতে ছাড়া তিনি বসতেন না।” টীকা. মারিফাতুস সুনানি ওয়াল আসার হা/১৪৭১ ৪/২৪০, ইরওয়াউল গালীল হা/৪১৮ এর আলোচনাপর্যালোচনা এটি মূলত কাতাদা থেকে আবান ইবনে ইয়াযিদের বর্ণিত হযরত আয়শার রা. মারফু-মুত্তাসিল হাদীসটিই, যা নিয়ে আমরা দীর্ঘ আলোচনা করে আসলাম। হাদীসটি বর্ণনা করেছেন হাকেম ও বাইহাকী রহ.। এটিকে ভিন্ন কোন হাদীস হিসেবে কেউই বর্ণনা করেননি। আমার জানা মতে গ্রন্থকারই এটিকে প্রথম ভিন্ন হাদীস হিসেবে রূপ দিয়েছেন। বাইহাকীর দ্ইু কিতাব থেকেই তার বক্তব্য তুলে ধরছি। যে কোন সাধারণ পাঠকই বিষয়টি সহজে বুঝতে পারবেন ইনশাল্লাহ।বাইহাকী তাঁর মারিফাতুস সুনান’ গ্রন্থে কাতাদাসূত্রে বর্ণিত হযরত আয়শার মরফু-মুত্তাসিল হাদীস সম্পর্কে আলোচনায় বলেন ورواه أبان بن يزيد، عن قتادة وقال فيه এ হাদীসটিই আবান বর্ণনা করেছেন কাতাদা থেকে, যাতে তিনি বলেন, ...’। অর্থাৎ ইমাম বাইহাকী রহ. পূর্বের বর্ণনা থেকে এ বর্ণনাটির কেবল শব্দের পার্থক্যটাই কেবল দেখাতে চেয়েছেন। সনদে বা সূত্রে কোন পার্থক্য নেই। বরং এটিও পূর্বের সনদেই বর্ণিত। তাহলে এর সনদ হল কাতাদা-যুরারাহ-সাদ ইবন হিশাম-আয়শা ...।অতঃপর বাইহাকী রহ. বলেন, وهو بخلاف رواية ابن أبي عروبة ، وهشام الدستوائي ، ومعمر ، وهمام عن قتادةকাতাদা থেকে বর্ণনাকারী আবানের হাদীসের শব্দ কাতাদা থেকে অপর বর্ণনাকারী ইবনে আবী আরূবা, হিশাম, মামার ও হাম্মাম সকলের বর্ণনার বিরোধী।’ অর্থাৎ সনদে কোন ভিন্নতা নেই, ভিন্নতা কেবল শব্দে। এ বিষয়টি তিনি তার আস-সুনানুল কুবরায়’ আরো স্পষ্ট করে দিয়েছেন। এবং সব শেষে বলেছেন আবানের বর্ণনাটি ভুল।গ্রন্থকার এখানে ১. টীকায় দুটি বরাত উল্লেখ করেছেন। এক মারিফাতুস সুনানি ওয়াল আসারবাইহাকী। আর সেখানে ورواه أبان بن يزيد عن قتادة وقال فيه كان رسول الله صلى الله عليه وسلم বর্ণনার এ শব্দের শুরু থেকে ورواه أبان بن يزيد আর এ বর্ণনাটি আবান কাতাদাসূত্রে বর্ণনা করেছেন’ কথাটি এবং মাঝখান থেকে وقال فيه এবং তাতে তিনি আবান বলেছেন’ শব্দটি ইচ্ছাকৃত বাদ দিয়েছেন। দেখুন এ বর্ণনাটি’ এবং তাতে’ শব্দ দুটি দ্বারা কোন বর্ণনাকে বুঝানো হয়েছে, জিজ্ঞেস করলে স্বাভাবিক উত্তর আসবে পূর্বে উল্লিখিত বর্ণনাটি। আর পূর্বে হযরত আয়শা থেকে কাতাদাসূত্রে বর্ণিত বিতর বিষয়ক মুরফু-মুত্তাসিল বর্ণনাটি। এটি ভিন্ন কোন বর্ণনা নয় যে আবার আরেকটি নাম্বার দিয়ে তাকে উল্লেখ করতে হবে।দুই তিনি টীকায় বলেছেন বিস্তারিত ইরওয়াউল গালীলের আলোচনা দ্রষ্টব্য। আমি শায়খ আলবানীর ইরওয়াউল গালীলের পূর্ণ আলোচনায় যা পেলাম তাতে শব্দ আছে فأخرجه الحاكم ১/৩০৪ وعنه البيهقى ৩/২৮ من طريق شيبان بن فروخ أبى شيبة حدثنا أبان عن قتادة به بلفظ " كان رسول الله صلى الله عليه وسلم يوتر بثلاث لا يسلم। অর্থাৎ আলবানী সাহেব বলেনহাদীসটি অর্থাৎ পূর্বোক্ত হযরত আয়শার মারফু হাদীস বর্ণনা করেছেন হাকেম এবং হাকেম থেকে বাইহাকী শাইবান ইবনে ফাররুখসূত্রে। শাইবান বলেন আবান কাতাদা থেকে এ সনদেই’ আমাদেরকে হাদীসটি বর্ণনা করেছেন এ শব্দে’ যে, ...।’ লক্ষ করুন এখানে أبان عن قتادة به بلفظ আবান কাতাদা থেকে এ সনদেই’ এ শব্দে’ বর্ণনা করেছেন ...। এখানে به এ সনেদেই বা এ সূত্রেই’ কথার মানেই হল পূর্ববর্তী সূত্রে। অর্থাৎ কাতাদা যুরারাহ থেকে, তিনি সাদ ইবনে হিশাম থেকে, তিনি হযরত আয়শা রা. থেকে। হাদীসের যে কোন ছাত্রই বুঝে পূর্ববর্তী কোন সূত্র উল্লেখের পর যখন অন্য আরেকটি সূত্র উল্লেখ করা হয় আর তাতে বলা হয় به এ সূত্রেই’, তার দ্বারা বুঝা যায় এ হাদীসটিও পূর্ববর্তী সূত্রেই বর্ণিত হয়েছে। বরং এক্ষেত্রে কখনো পারিপার্শ্বিক অবস্থার উপর ভিত্তি করে به শব্দ ছেড়ে দেওয়া হয়, উদ্দেশ্য হয় যে, এটি পূর্ববর্তী সূত্রে বর্ণিত। কিন্তু হাদীসের কিতাবের রীতি ও পরিভাষা সম্পর্কে যিনি অজ্ঞ তিনি তা কি করে বুঝবেন!মোট কথা বিষয়টি বাইহাকী ও আলবানী সাহেবের বক্তব্যে দিবালোকের ন্যায় স্পষ্ট যে, এটি কাতাদাসূত্রে হযরত আয়শার সেই হাদীস যা গ্রন্থকার ক শিরোনামে এক নাম্বারে দলিল হিসেবে উল্লেখ করেছেন!সুতরাং আমরা বলতে পারি তিনি একটি হাদীসকেই নিজ হাতে কাট ছাটের পর দুটি হাদীস বানানোর চেষ্টা করলেন!২. হাদীসটিকে পূর্বে ক শিরোনামে এক নাম্বারে উল্লেখের পর আবার দ্বিতীয়বার একেই উল্লেখ করলেন সামান্য পরিবর্তন করে ভিন্ন দলিল হিসেবে দেখানোর জন্য।৩. এভাবে তিনি একটি মুত্তাসিল বর্ণনাকে মুরসাল বানিয়ে পেশ করলেন।গ্রন্থকার ২১গ্রন্থকারের চতুর্থ দলিল-عن أبي بن كعب أن رسول الله صلى الله عليه وسلم كان يوتر بثلاث ركعات كان يقرأ في الأولى بسبح اسم ربك الأعلى وفي الثانية بقل يا أيها الكافرون وفي الثالثة بقل هو الله أحد ويقنت قبل الركوع فإذا فرغ قال عند فراغه سبحان الملك القدوس ثلاث مرات يطيل في آخرهن.“ঘ উবাই ইবনু কাব হতে বর্ণিত রাসূল ছাঃ তিন রাকআত বিতর পড়তেন। প্রথম রাকআতে সাব্বিহিসমা রাব্বিকাল আলা, দ্বিতীয় রাকআতে কুল ইয়া আইয়ুহাল কাফেরূন এবং তৃতীয় রাকআতে কুল হুওয়াল্লাহুল আহাদ পড়তেন। এবং তিনি রুকুর পূর্বে কুনূত পড়তেন। অতঃপর যখন তিনি শেষ করতেন তখন শেষে তিনবার বলতেন সুবহানাল মালিকিল কুদ্দুস। শেষ বার টেনে বলতেন ”অতঃপর বলেন “উক্ত হাদীছও প্রমাণ করে রাসূল ছঃ একটানা তিন রাকআত পড়েছেন, মাঝে বৈঠক করননি।”পর্যালোচনাএ হাদীস কিভাবে প্রমাণ করে যে তিনি মাঝে বৈঠক করতেন না বিষয়টি বড়ই আশ্চর্যজনক। গ্রন্থকার হয়ত বলবেন যে, এতে তিন রাকাত নামাযের কথা এসেছে, কিন্তু মাঝে দুই রাকাত শেষে বৈঠকের কথা বলা হয়নি। এতে বুঝা যায় যে তিনি বৈঠক করেননি। কিন্তু গ্রন্থকার বলবেন কি যে, এ হাদীসে সূরা ফাতিহা, রুকু-সিজদা, শেষ বৈঠকের কথা, এমনকি সালামের কথা বলা হয়নি, তাহলে কি এ থেকে বুঝা যায় নবীজী এসবের কোনটিই করেননি?!গ্রন্থকার - ২২গ্রন্থকারের পঞ্চম ও শেষ দলিলعَنْ عَطَاءٍ أَنَّهُ كَانَ " يُوتِرُ بِثَلاثٍ لا يَجْلِسُ فِيهِنَّ، وَلا يَتَشَهَّدُ إِلا فِي آخِرِهِنَّ“ঙ আত্বা রাঃ তিন রাকআত বিতর পড়তেন। কিন্তু মাঝে বসতেন না। এবং শেষ রাকআত ব্যতীত তাশাহহুদ পড়তেন না।” হাকেম হা/১১৪২পর্যালোচনাএখানেও গ্রন্থকার খিয়ানত করেছেন১. বর্ণনাটি মরফু বা মওকুফও নয়; বরং একজন তাবেঈর আমল মাত্র।২. যেখানে সাহাবীর মওকুফ বর্ণনাকেও তিনি দলিল মানতে নারাজ, সেখানে তিনি তাবেঈর আমলকে দলিল হিসেবে উল্লেখ করে যাচ্ছেন।৩. বর্ণনাটির হুকুম তথা মান কী গ্রন্থকার বলেননি। টীকায় তিনি কেবল হাকেমের বরাত উল্লেখ করেই ক্ষ্যান্ত রয়েছেন। অথচ এর সনদে الْحَسَنُ بْنُ الْفَضْلِ হাসান ইবনে ফজল রয়েছেন যিনি মুসলিম ইবনে ইবরাহীম থেকে হাদীস বর্ণনাকারী। উক্ত হাসান মাতরুক ও মুত্তাহাম বিল কাযিব’ মিথ্যার অভিযোগে অভিযুক্ত। আল-মুগনী ফিয-যুআফা, মীযানুল ইতিদাল ও লিসানুল মীযান। শায়খ নাসীরুদ্দীন আলবানী সাহেব যঈফা উপরোক্ত হাসান বর্ণিত একটি বর্ণনাকে সুস্পষ্ট জাল আখ্যায়িত করেন এবং জাল হওয়ার কারণ হিসেবে তাকেই চিহ্নিত করে বলেন, قلت وهذا موضوع ظاهر الوضع؛ آفته البواصرائي هذا؛ واسمه الحسن بن الفضل بن السمح الزعفراني، وهو متروك الحديث؛ كما في "الأنساب" و "اللباب" وغيرهما .সুতরাং এ বর্ণনটি কোন ধরণের দলিলযোগ্য নয়। এমন একজন বর্ণনাকারী থাকা সত্ত্বেও গ্রন্থকার এখানে কোন কিছু না বলে একে দলিল হিসেবে পেশ করে গেলেন, বিষয়টি তার আমানদারীকে মারাত্মকভাবে প্রশ্নবিদ্ধ করে।গ্রন্থকার - ২৩গ্রন্থকারের অতিরিক্ত আরেকটি দলিলগ্রন্থকার বলেন “এমন কি পাঁচ রাকআত পড়লেও রাসূল ছাঃ এক বৈঠকে পড়েছেন। عن عائشة أن النبي صلى الله عليه وسلم كان يوتر بخمس ولا يجلس إلا في آخرهن পাঁচ রাকআত বিতর পড়তেন কিন্তু শেষ রাকআত ছাড়া বসতেন না। ”পর্যালোচনাসূত্রের সামান্য পার্থক্যে একই হাদীস এসেছে ভিন্ন শব্দে যেখানে لا يجلس বসতেন না’ কথাটি নেই। বরং শব্দ এসেছে لا يسلم সালাম ফিরাতেন না’। দেখুন বাইহাকী আস-সুনানুল কুবরার বর্ণনায় শব্দ এসেছেيُوتِرُ بِخَمْسٍ وَلا يُسَلِّمُ فِي شَيْءٍ مِنَ الْخَمْسِ حَتَّى يَجْلِسَ فِي الآخِرَةِ وَيُسَلِّمَ - رواه البيهقي في الصغرى والكبرى وأبو عوانة في مستخرجه وابن المنذر في الأوسطগ্রন্থকার - ২৪গ্রন্থকার বলেন“জ্ঞাতব্য তিন রাকআত বিতর পড়ার ক্ষেত্রে দুই রাকআত পড়ে সালাম ফিরিয়ে পুনরায় এক রাকআত পড়া যায়। তিন রাকআত বিতর পড়ার এটিও একটি উত্তম পদ্ধতি।”পর্যালোচনাবিতরের এ পদ্ধতি বিষয়ে গ্রন্থকার মূল বইয়ে কোন হাদীস উল্লেখ না করে টীকায় কিছু বরাত ও একটি হাদীস উল্লেখ করেছেন। তাই “এটিও একটি উত্তম পদ্ধতি” কথাটি যাচাই করার জন্য টীকার বরাতগুলো যাচাই ও পর্যালোচনা করে দেখতে হবে।এক ইবনে উমর রা. এর বর্ণনাটীকায় গ্রন্থকার মূলত দুটি বর্ণনার দিকে ইঙ্গিত করেছেন। প্রথমে যে বরাতটি উল্লেখ করেছেন তা হল “১২৮৯. বুখারী হা/৯৯১ ১ম খ- ইফাবা হ/৯৩৭২/২২৫ সিলসিলা ছহীহাহ হা/২৯৬২ সনদ ছহীহ, ইরওয়াউল গালীল হা/৪২০ এর আলোচনা দ্রঃ ২/১৪৮ পৃঃ; দেখুনঃ আলবানী, কিয়ামু রামাযান, পৃঃ২২;...”পর্যালোচনাএখানে কয়েকটি বিষয় লক্ষণীয়১. সহীহ বুখারীর বর্ণনাটি এরূপ وعن نافع أن عبد الله بن عمر كان يسلم بين الركعة والركعتين في الوتر حتى يأمر ببعض حاجته হযরত নাফে বলেন, আব্দুল্লাহ ইবনে উমর বিতর সালাতে দুই রাকাত ও এক রাকাতের মধ্যে সালাম ফিরাতেন। এমনকি তার কোন প্রয়োজনের কথাও বলতেন’। সহীহুল বুখারী সুতরাং বিষয়টি অত্যন্ত সুস্পষ্ট যে, এটি আব্দুল্লাহ ইবনে উমর রা. এর ব্যক্তিগত আমল, যাকে পরিভাষায় মওকুফ’ বলে। এটি নবীজীর কথা বা কাজ নয়। গ্রন্থকার তার বইয়ে বারবার বিভিন্ন দলিলে মওকুফ’ হওয়াকে দোষ হিসেবে উল্লেখ করেছেন। আর এখানে মওকুফকেই প্রমাণ হিসেবে উল্লেখ করলেন।৩. এ বইয়ে গ্রন্থকার একটি দলিলকেই একাধিক বানিয়ে দেখানোর উদ্দেশ্যে বারবার উল্লেখ করে থাকেন। কিন্তু এখানে মূল বইয়ে তার দাবীর পক্ষে কোন দলিলই উল্লেখ করেননি। তবে টীকায় একটি মরফু’ বর্ণনার আরবী বক্তব্য উল্লেখ করেছেন। কিন্তু ইবনে উমরের এ মওকুফ’ বর্ণনাটি তার পক্ষে প্রধান দলিল হওয়া সত্ত্বেও তিনি তা মূল আলোচনা ও টীকা কোথাও উল্লেখ না করে বরং আরবী ও বাংলা বুখারীর কেবল বরাত উল্লেখ করেই ক্ষান্ত রইলেন কেন? এটা কি এ কারণে যে, উল্লেখ করলে ধরা পড়ে যাবেন এটি মরফু নয় বরং মওকুফ? তাহলে কি বুখারীর বরাত উল্লেখ করে তিনি পাঠককে ধাঁধায় ফেলতে চেয়েছেন?৪. গ্রন্থকার এ হাদীসের আরো দুটি বরাত দিয়েছেন আলবানী সাহেবের সিলসিলা’ হা/২৯৬২ ও ইরওয়াউল গালীল’ ২/১৪৮। আর কিতাব দুটির বর্ণনা থেকে বাহ্যত বুঝা যায়,বাকী অংশের জন্যে "বিতর সালাত পরিশিষ্ট-পঞ্চম অংশ" দেখুন!!
nashoihul ibad bab 7